पुस्तक का नाम : गोदान
लेखक : मुंशी प्रेमचंद
परिचय:
“गोदान” हिंदी साहित्य के सबसे प्रतिष्ठित उपन्यासों में से एक है, जिसे ‘उपन्यास सम्राट’ मुंशी प्रेमचंद ने लिखा है। यह उपन्यास भारतीय ग्रामीण समाज की सच्चाई, किसानों की दुर्दशा, सामाजिक असमानता, धर्म के नाम पर शोषण और परिवारिक संबंधों की गहराई को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करता है। “गोदान” केवल एक किसान की कहानी नहीं है, बल्कि उस पूरे भारतीय समाज का आईना है, जो आज़ादी से पहले और आज़ादी के बाद भी कहीं न कहीं वैसा ही बना रहा।
कहानी का सार:
कहानी का मुख्य पात्र होरी एक गरीब किसान है, जो अत्यंत ईमानदार और परिश्रमी है। उसका सबसे बड़ा सपना एक गाय खरीदना है, ताकि वह सामाजिक और धार्मिक दृष्टि से सम्मान प्राप्त कर सके। लेकिन वह समाज की कुरीतियों, कर्ज, महाजन और पंडितों के शोषण में फंसा हुआ है।
उसकी पत्नी धनिया एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाली महिला है, जो हमेशा अपने परिवार को टूटने से बचाने में लगी रहती है। होरी का बेटा गोबर परंपराओं से तंग आकर शहर भाग जाता है और एक निम्न जाति की लड़की झुनिया से प्रेम कर लेता है, जिसे वह गांव ले आता है।
गांव में जाति, धर्म, लिंग, और आर्थिक स्थिति के आधार पर जो भेदभाव और संघर्ष होते हैं, वही इस उपन्यास की मूल आत्मा हैं। अंत में, होरी अपने जीवन की अंतिम सांसों में गाय का दान करने की इच्छा रखता है — यही ‘गोदान’ है। लेकिन वह असल में न तो गाय खरीद पाता है, न ही जीवन की शांति।
मुख्य विषय:
- गरीबी और शोषण: किसान का शोषण ज़मींदार, महाजन और धार्मिक संस्थाएं मिलकर करती हैं।
- जातिवाद: निम्न जातियों के साथ भेदभाव को गंभीरता से दर्शाया गया है।
- धर्म और पाखंड: धर्म के नाम पर गरीबों का शोषण होता है।
- नारी शक्ति: धनिया और झुनिया जैसी पात्र महिलाएं अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करती हैं।
- गांव बनाम शहर: परंपरा और आधुनिकता के बीच का टकराव गोबर के माध्यम से दिखाया गया है।
लेखन शैली और भाषा:
प्रेमचंद की भाषा बेहद सहज, प्रभावशाली और जनमानस से जुड़ी हुई है। पात्रों की बातचीत, भावनाएँ और परिवेश का वर्णन इतना यथार्थपूर्ण है कि पाठक स्वयं को कहानी में मौजूद महसूस करता है।
निष्कर्ष और मूल्यांकन:
“गोदान” एक कालजयी उपन्यास है, जो न केवल साहित्यिक दृष्टि से महान है, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह उपन्यास आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना अपने समय में था। यह हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वाकई हमारा समाज बदल पाया है?
संदेश: ईमानदारी, परिश्रम और धार्मिक आस्था के बावजूद जब तक सामाजिक और आर्थिक न्याय नहीं होगा, तब तक होरी जैसे पात्र पीड़ित ही रहेंगे।